Saturday, November 28, 2009

संगठन के सहयोगी

भारतीय एकता संगठन के निर्माण में जिन खास लोगो का योगदान रहा है वो निम्न वत है
कन्हया लाल यादव ,स्वर्गीय अनिल कुशवाहा ,अनूप विशकर्मा ,प्रमोद कुशवाहा ,राजू कुशवाहा ,सुशिल केशरवानी ,धर्मराज सिंह ,राहुल मिश्रा ,भूपेंद्र शुक्ला ,राम लखन तिवारी ,चंद्र कान्त पाण्डेय ,विमलेश मिश्रा 'पूनम ', मिथिलेश मिश्रा ,विनोद विशकर्मा ,अरुण यादव ,कमल त्रिपाठी ,ब्रिजेश शर्मा ,कपिल शर्मा ,सैलेन्द्र मिश्रा 'बाबा ', सूर्य प्रकाश उपाध्याय ,मोहमद हुमैद मुस्तफा ,अजय उपाध्याय ,अशोक बेशरम ,राजेश पटेल ,राजेश कुमार ,विभा शुक्ला ,महाकवि त्रिफला ,श्री कन्दर्प नाथ मिश्रा ,आनंद पाण्डेय , श्रीमती अपर्णा मिश्रा ,श्रीमती दीपा चंद संयोजक संवेदना ,इतने नाम है लिख पाना मुस्किल है / मै कई नाम भूल रहा हूँ पर इसका ये
मतलब बिल्कुल नही है की संगठन आप के वजूद को भूल गया है / आप सब जिनका नाम यहाँ नही आ पाया वो हर सदस्य हमसे कही आगे रहा है संगठन के विकास में
भारतीय एकता संगठन परिवार आप सब सहयोगियों का दिल से नमन करता है /





संगठन के संयोजक को मिले सम्मान पत्र





























शुभ कामना पत्र


भारतीय एकता संगठन कार्यालय को भारत के
रास्त्रपति की तरफ़ से भेजे गए पत्र का जवाब

Thursday, November 19, 2009

धर्मं के बारे में

बहादुरगढ [जासंकें]। उपमंडल के गांव सौलधाके सत्संग भवन में श्रद्धालुओं को प्रवचन सुनाते हुए पंडित करण सिंह ने कहा कि वेद ही परमात्मा की पवित्र वाणी है जिसमें परमात्मा ने मनुष्य को सृष्टि में रहकर उत्तम तरीके से जीवन जीने के तरीका बताया है। आज मनुष्य वेद की शिक्षाओं को भुलाकर पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण कर रहा है जिसके कारण अधिकतर मनुष्य दुखी हैं।
पंडित जी ने कहा कि वेद में मनुष्य को जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति के शिखर पर पहुंचने का मार्ग बताया गया है। वेद में वैज्ञानिक आधार पर जीवन जीने का आध्यात्मिक विकास का मार्ग बताया गया है। इस मार्ग पर चलकर मनुष्य अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है। वेद में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों रास्तों को मिलाकर अपनाने की शिक्षा दी गई है।
केवल एक मार्ग पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को उन्नति के शिखर पर नहीं पहुंचा सकता है। केवल एक मार्ग पर चलने वाले लोग गहरे अंधकार में डूब जाते हैं जिसके कारण अपने वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करने के बजाय अंधेरे रास्तों में भटक कर जीवन को बर्बाद करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि केवल भौतिक मार्ग को अपनाने वाले लोग भौतिक सुख सुविधाओं को एकत्र करने में लगे रहते हैं। वे इन सुख सुविधाओं के माध्यम से शरीर को सुसज्जित करने में तो लगे रहते हैं किन्तु आत्मा के विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दे पाते हैं। जिसके कारण वे अपने चरम लक्ष्य की प्राप्ति की ओर एक कदम भी नहीं चल पाते हैं और परमात्मा द्वारा दिए गए इस अनुपम मानव जीवन को बर्बाद कर देते हैं।
दूसरी ओर केवल आध्यात्मिक मार्ग को अपनाने वाले लोग भी भौतिक साधनों का सहारा लिए बिना अपनी जीवन नौका को पार नहीं लगा सकते हैं। शरीर की रक्षा के लिए भौतिक साधनों का सहारा लेना आवश्यक हे। मनुष्य जीवन सुरक्षित रहने पर ही वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ सकता है। उन्होंने कहा कि आज हम वेद की शिक्षाओं को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने में लगे हैं। यह संस्कृति मनुष्य को केवल भौतिक मार्ग चलने के लिए प्रेरित करती हैं। यह मार्ग देखने में तो बहुत आकर्षक लगता है किन्तु अंत में यह दुख में गहरे सागर में ले जाकर जीवन को कष्ट भोगने के लिए मजबूर करता है। हमें वेद की शिक्षाओं का पालन करते हुए भौतिक और आध्यात्मिक मार्ग दोनों का समन्वय करके चलना चाहिए। दोनों मार्गो के समन्वय से ही मानव उन्नति

समाचार

सबसे पहले दो उदाहरण। उत्तर प्रदेश के एक छोटे शहर में रहने वाले प्रीतम और प्राची ने बारहवीं के दौरान ही यह तय कर लिया कि ग्रेजुएशन के बाद वे जर्नलिज्म का कोर्स करके मीडिया में करियर बनाएंगे। हालांकि उस समय उन्होंने मीडिया के ग्लैमर को देखकर ही इस क्षेत्र में आने के बारे में सोचा था, लेकिन प्राची ने जहां तभी से खुद को इसके मुताबिक ढालना आरंभ कर दिया, वहीं प्रीतम ने तर्क दिया कि कोर्स के दौरान तो सारी ट्रेनिंग मिल ही जाएगी। फिर इतनी कवायद क्यों? प्राची ने ग्रेजुएशन के दौरान कई अखबारों-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर लेख भेजे, जिनमें से अधिकांश छपे भी।
दरअसल, कोई भी लेख तैयार करने से पहले वह समाचार पत्रों और उनके परिशिष्टों को बारीकी से पढती थी। उनका नेचर समझने के बाद नितांत सामयिक विषयों पर सभी पहलुओं को शामिल कर लेख की तैयारी करती थी। ग्रेजुएशन के बाद दोनों को बीएमजे कोर्स में दाखिला तो मिल गया, लेकिन प्राची ने जहां अपने अभ्यास के बल पर सभी को प्रभावित किया, वहीं प्रीतम तथा अन्य स्टूडेंट ऐसा करने में सफल नहीं रहे। कोर्स के आखिर में प्राची की योग्यता व कॉन्फिडेंस को देख कैंपस सेलेक्शन के माध्यम से एक नामी चैनल ने उसे रिपोर्टर के तौर पर चुन लिया।
उधर, प्रीतम ने बीएमजे तो पूरा कर लिया, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी वह अखबारों व चैनलों की खाक छान रहा है। आज प्रीतम जैसा हाल इस क्षेत्र में करियर बनाने की चाहत रखने वाले तमाम युवाओं का है। दरअसल, तमाम युवा ग्लैमर और इस क्षेत्र के कामयाब लोगों को देखकर इस क्षेत्र में आने का निर्णय तो कर लेते हैं, लेकिन वे यह नहीं सोचते कि आखिर कामयाब लोग इतनी बुलंदी पर कैसे पहुंचे?
खबरों को सूंघने की क्षमता
इंदिरा गांधी नेशनल ओपेन यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ जर्नलिज्म ऐंड न्यू मीडिया स्टडीज के डायरेक्टर प्रो. एस. एन. सिंह का कहना है कि आज महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक में तमाम मीडिया स्कूलों के खुलने के बावजूद युवाओं को सही तरीके से तराशा नहीं जा रहा है। कामयाबी के लिए शॉर्टकट तो ढूंढा जा रहा है, पर युवाओं को कहीं से प्रेरणा नहीं मिल रही है। आमतौर पर मीडिया कोर्स करने के दौरान उन्हें हर जगह न तो सही फैकल्टी मिल पाती है और न ही जरूरी प्रैक्टिकल ट्रेनिंग। इसके अलावा, पढने और किसी भी विषय को गहराई से जानने की उत्सुकता का अभाव भी योग्य मीडियामैन तैयार न कर पाने के लिए जिम्मेदार है।
प्रो. सिंह मानते हैं कि भले ही आज मीडिया में टेक्नोलॉजी हावी हो, लेकिन कंटेंट का कोई विकल्प नहीं है और न ही इस फील्ड में शॉर्टकट से ज्यादा आगे जाया जा सकता है। मीडिया के छात्र में जब तक खबरों को सूंघ कर समझ लेने और नए तरीके से सोचने की क्षमता नहीं डेवलप होगी, वह कामयाबी की राह पर आगे नहीं बढ सकता।
जरूरतों को समझें
नई दिल्ली स्थिति भारतीय जनसंचार संस्थान में हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्त्रम के डायरेक्टर डॉ. आनंद प्रधान का मानना है कि पत्रकारिता का कोर्स कराने वाले संस्थानों को मीडिया इंडस्ट्री की जरूरत को समझना होगा, तभी वे उनके अनुरूप जर्नलिस्ट तैयार कर सकते हैं।
ऐसे युवाओं को अखबारों और टीवी चैनलों द्वारा अलग से कुछ खास ट्रेनिंग देने की जरूरत नहीं होगी। इसके लिए इंस्टीट्यूट्स और मीडिया इंडस्ट्री के बीच नियमित रूप से इंटरैक्शन होना चाहिए।
डॉ. आनंद इस बात से निराशा जताते हैं कि हिंदीभाषी क्षेत्र के अधिकांश विश्वविद्यालयों में आज भी पत्रकारिता शिक्षा का न तो कोई इंफ्रास्ट्रक्चर है और न ही उपयुक्त फैकल्टी। वह इसे हिंदी मीडिया का दुर्भाग्य मानते हैं कि आज भी प्रतिभावान और तेज-तर्रार स्टूडेंट की पहली प्राथमिकता पत्रकारिता नहीं होती। इंजीनियरिंग, मेडिकल, आईएएस, पीसीएस आदि में जिसका कहीं सेलेक्शन नहीं हो पाता, वही इस फील्ड में आता है।
हालांकि, उनकी इस बात से असहमति जताते हुए दिल्ली स्थित टेक वन स्कूल ऑफ मॉस कम्यूनिकेशन के डायरेक्टर इमरान जाहिद कहते हैं कि जर्नलिज्म में करियर बनाने का ख्वाब देखने वाले युवा बारहवीं की परीक्षा देने के बाद अप्रैल में ही ऐसे अच्छे इंस्टीट्यूट की तलाश में जुट जाते है,ं जहां से वे उपयुक्त कोर्स कर सकें। एडिट व‌र्क्स के डायरेक्टर सचिन सिंह कहते हैं कि मीडिया का कोर्स करने वाले हिंदी बेल्ट के छात्रों को खुद को अपडेट भी करते रहना चाहिए।
जरूरी खूबियां
नोएडा स्थित क्रॉनिकल इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन ऐंड मल्टीमीडिया के डायरेक्टर और अंग्रेजी के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वाई. सी. हालन का मानना है कि मीडिया से संबंधित कोर्स करने के अतिरिक्त एक कामयाब पत्रकार बनने के लिए किसी भी युवा में तीन बुनियादी गुणों का होना अति-आवश्यक है:
रिपोर्टिंग यानी खबर निकालने का गुण, डेस्क यानी खबर को खास बनाने का गुण और नेटवर्किग यानी अपने आंख-कान खुले रखना, ताकि संभावित खबरों को पहचान कर पकड सकें। ये गुण प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया तीनों के लिए जरूरी हैं। अगर रिपोर्टिंग में इंट्रेस्ट है, तो आपमें सूचना निकलवाना आना चाहिए, अन्यथा आप खबर नहीं बना सकते। अगर किसी के भीतर न्यूज सेंस यानी खबरों को समझने और सूचना निकलवाने का गुण है, तो वह एक अच्छा रिपोर्टर बन सकता है।
अगर कोई डेस्क पर काम करना चाहता है, तो उसे भाषा पर पूरा अधिकार होना चाहिए। हो सकता है कि रिपोर्टर की भाषा खराब हो, लेकिन खबर एक्सक्लूसिव या ब्रेकिंग हो। ऐसे में यह कॉपी एडिटर पर निर्भर करता है कि वह उस खबर को कितना प्रभावशाली बना पाता है। जटिल से जटिल बात को भी सरल भाषा में समझाने की कला में उसे पारंगत होना चाहिए और ऐसा नियमित अध्ययन और लेखन अभ्यास से हो सकता है।
कोर्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर
दिल्ली स्थित प्रान्स मीडिया के डायरेक्टर निखिल प्राण का मानना है कि किसी भी संस्थान से जर्नलिज्म का कोर्स करने से पहले स्टूडेंट को यह जरूर देखना चाहिए कि वहां उसके लायक कोर्स और जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर है या नहीं? साथ ही, वहां आज के जमाने के हिसाब से वहां लेटेस्ट टेक्नोलॉजी भी होनी चाहिए।
जानें टेक्नोलॉजी
टेक वन के डायरेक्टर इमरान जाहिद मानते हैं कि भले ही आज के यूथ में विषयों को गहराई से समझने की कमी है, लेकिन आज आगे निकलने के लिए टेक्नोलॉजी जानना भी जरूरी है और आज के युवा इसमें काफी तेज हैं। इसका लाभ उन्हें आज की मीडिया में मिल रहा है।
उनका कहना है कि स्तरीय मीडिया संस्थानों में न केवल इंडस्ट्री के साथ रेगुलर इंटरैक्शन होता है, बल्कि फैकल्टी के रूप में अधिकांश वही लोग होते हैं, जो प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुडे हैं। ऐसे में उन्हें थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल ट्रेनिंग भी मिलती है।
अरुण श्रीवास्तव
कोर्स और प्रमुख संस्थान
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन
कोर्स: पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन जर्नलिज्म (हिंदी व अंग्रेजी)
योग्यता: स्नातक
वेबसाइट: www.iimc.nic.in
स्कूल ऑफ जर्नलिज्म ऐंड न्यू मीडिया स्टडीज, इग्नू
कोर्स: पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन जर्नलिज्म ऐंड मास कम्यूनिकेशन
वेबसाइट: www.ignou.ac.in
जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड मास कम्यूनिकेशन (जेआईएमएमसी)
कोर्स: बीएससी इन मॉस कम्यूनिकेशन, पीजी डिप्लोमा इन प्रिंट-ब्रॉडकास्ट जर्नलिज्म
ई-मेल: jimmcnoida@gmail.com वेबसाइट: www.jimmc.in
टेक वन स्कूल ऑफ मास कम्यूनिकेशन
कोर्स: बैचलर ऑफ मॉस कम्यूनिकेशन, मास्टर्स ऑफ मास कम्यूनिकेशन, पीजीडीएमसी
वेबसाइट: www.takeoneschool.org
प्रान्स मीडिया ई-मेल: pran@pran.in
वेबसाइट: www.pran.in
क्रॉनिकल इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन
कोर्स: बीएससी (एमसीएजे), पीजीएमसीएजे
ई-मेल: info@cimcom.in
वेबसाइट: www.cimcom.in
एडिट व‌र्क्स स्कूल ऑफ मॉस कम्यूनिकेशन

संगठन कार्यक्रम



भारतीय एकता संगठन के कार्यक्रम में तुलसीदास जी के ऊपर बोलते हुए पंडित हरिशंकर द्रिवेदी जी


आप एक महँ शिक्षा विद है भारतीय एकता संगठन परिवार अपने कार्यक्रम में आपको पाकर


अभिभूत है

Friday, November 6, 2009

राम सेतु

राम सेतु के बारे में जानकारी प्राप्त करे

हम भारतीय विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के वारिस है तथा हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा उत्कृष्ट प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। किंतु दीर्घकाल की परतंत्रता ने हमारे गौरव को इतना गहरा आघात पहुंचाया कि हम अपनी प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति के बारे में खोज करने की तथा उसको समझने की इच्छा ही छोड़ बैठे। परंतु स्वतंत्र भारत में पले तथा पढ़े-लिखे युवक-युवतियां सत्य की खोज करने में समर्थ है तथा छानबीन के आधार पर निर्धारित तथ्यों तथा जीवन मूल्यों को विश्व के आगे गर्वपूर्वक रखने का साहस भी रखते है। श्रीराम द्वारा स्थापित आदर्श हमारी प्राचीन परंपराओं तथा जीवन मूल्यों के अभिन्न अंग है। वास्तव में श्रीराम भारतीयों के रोम-रोम में बसे है। रामसेतु पर उठ रहे तरह-तरह के सवालों से श्रद्धालु जनों की जहां भावना आहत हो रही है,वहीं लोगों में इन प्रश्नों के समाधान की जिज्ञासा भी है। हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयत्‍‌न करे:- श्रीराम की कहानी प्रथम बार महर्षि वाल्मीकि ने लिखी थी। वाल्मीकि रामायण श्रीराम के अयोध्या में सिंहासनारूढ़ होने के बाद लिखी गई। महर्षि वाल्मीकि एक महान खगोलविद् थे। उन्होंने राम के जीवन में घटित घटनाओं से संबंधित तत्कालीन ग्रह, नक्षत्र और राशियों की स्थिति का वर्णन किया है। इन खगोलीय स्थितियों की वास्तविक तिथियां 'प्लैनेटेरियम साफ्टवेयर' के माध्यम से जानी जा सकती है। भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' नामक साफ्टवेयर प्राप्त किया, जिससे सूर्य/ चंद्रमा के ग्रहण की तिथियां तथा अन्य ग्रहों की स्थिति तथा पृथ्वी से उनकी दूरी वैज्ञानिक तथा खगोलीय पद्धति से जानी जा सकती है। इसके द्वारा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार पर आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर की तारीखें निकाली है। इस प्रकार उन्होंने श्रीराम के जन्म से लेकर 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या पहुंचने तक की घटनाओं की तिथियों का पता लगाया है। इन सबका अत्यंत रोचक एवं विश्वसनीय वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक 'डेटिंग द एरा ऑफ लार्ड राम' में किया है। इसमें से कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण यहां भी प्रस्तुत किए जा रहे है।
श्रीराम की जन्म तिथि
महर्षि वाल्मीकि ने बालकाण्ड के सर्ग 18 के श्लोक 8 और 9 में वर्णन किया है कि श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ। उस समय सूर्य,मंगल,गुरु,शनि व शुक्र ये पांच ग्रह उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। ग्रहों,नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति इस प्रकार थी-सूर्य मेष में,मंगल मकर में,बृहस्पति कर्क में, शनि तुला में और शुक्र मीन में थे। चैत्र माह में शुक्ल पक्ष नवमी की दोपहर 12 बजे का समय था।
जब उपर्युक्त खगोलीय स्थिति को कंप्यूटर में डाला गया तो 'प्लैनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर' के माध्यम से यह निर्धारित किया गया कि 10 जनवरी, 5114 ई.पू. दोपहर के समय अयोध्या के लेटीच्यूड तथा लांगीच्यूड से ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति बिल्कुल वही थी, जो महर्षि वाल्मीकि ने वर्णित की है। इस प्रकार श्रीराम का जन्म 10 जनवरी सन् 5114 ई. पू.(7117 वर्ष पूर्व)को हुआ जो भारतीय कैलेण्डर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है और समय 12 बजे से 1 बजे के बीच का है।
श्रीराम के वनवास की तिथि
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड (2/4/18) के अनुसार महाराजा दशरथ श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते थे क्योंकि उस समय उनका(दशरथ जी) जन्म नक्षत्र सूर्य, मंगल और राहु से घिरा हुआ था। ऐसी खगोलीय स्थिति में या तो राजा मारा जाता है या वह किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाता है। राजा दशरथ मीन राशि के थे और उनका नक्षत्र रेवती था ये सभी तथ्य कंप्यूटर में डाले तो पाया कि 5 जनवरी वर्ष 5089 ई.पू.के दिन सूर्य,मंगल और राहु तीनों मीन राशि के रेवती नक्षत्र पर स्थित थे। यह सर्वविदित है कि राज्य तिलक वाले दिन ही राम को वनवास जाना पड़ा था। इस प्रकार यह वही दिन था जब श्रीराम को अयोध्या छोड़ कर 14 वर्ष के लिए वन में जाना पड़ा। उस समय श्रीराम की आयु 25 वर्ष (5114- 5089) की निकलती है तथा वाल्मीकि रामायण में अनेक श्लोक यह इंगित करते है कि जब श्रीराम ने 14 वर्ष के लिए अयोध्या से वनवास को प्रस्थान किया तब वे 25 वर्ष के थे।
खर-दूषण के साथ युद्ध के समय सूर्यग्रहण
वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के 13 वें साल के मध्य में श्रीराम का खर-दूषण से युद्ध हुआ तथा उस समय सूर्यग्रहण लगा था और मंगल ग्रहों के मध्य में था। जब इस तारीख के बारे में कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से जांच की गई तो पता चला कि यह तिथि 5 अक्टूबर 5077 ई.पू. ; अमावस्या थी। इस दिन सूर्य ग्रहण हुआ जो पंचवटी (20 डिग्री सेल्शियस एन 73 डिग्री सेल्शियस इ) से देखा जा सकता था। उस दिन ग्रहों की स्थिति बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी वाल्मीकि जी ने वर्णित की- मंगल ग्रह बीच में था-एक दिशा में शुक्र और बुध तथा दूसरी दिशा में सूर्य तथा शनि थे।
अन्य महत्वपूर्ण तिथियां
किसी एक समय पर बारह में से छह राशियों को ही आकाश में देखा जा सकता है। वाल्मीकि रामायण में हनुमान के लंका से वापस समुद्र पार आने के समय आठ राशियों, ग्रहों तथा नक्षत्रों के दृश्य को अत्यंत रोचक ढंग से वर्णित किया गया है। ये खगोलीय स्थिति श्री भटनागर द्वारा प्लैनेटेरियम के माध्यम से प्रिन्ट किए हुए 14 सितंबर 5076 ई.पू. की सुबह 6:30 बजे से सुबह 11 बजे तक के आकाश से बिल्कुल मिलती है। इसी प्रकार अन्य अध्यायों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित ग्रहों की स्थिति के अनुसार कई बार दूसरी घटनाओं की तिथियां भी साफ्टवेयर के माध्यम से निकाली गई जैसे श्रीराम ने अपने 14 वर्ष के वनवास की यात्रा 2 जनवरी 5076 ई.पू.को पूर्ण की और ये दिन चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी ही था। इस प्रकार जब श्रीराम अयोध्या लौटे तो वे 39 वर्ष के थे (5114-5075)।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम से श्रीलंका तक समुद्र के ऊपर पुल बनाया। इसी पुल को पार कर श्रीराम ने रावण पर विजय पाई। हाल ही में नासा ने इंटरनेट पर एक सेतु के वो अवशेष दिखाए है, जो पॉक स्ट्रेट में समुद्र के भीतर रामेश्वरम(धनुषकोटि) से लंका में तलाई मन्नार तक 30 किलोमीटर लंबे रास्ते में पड़े है। वास्तव में वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि विश्वकर्मा की तरह नल एक महान शिल्पकार थे जिनके मार्गदर्शन में पुल का निर्माण करवाया गया। यह निर्माण वानर सेना द्वारा यंत्रों के उपयोग से समुद्र तट पर लाई गई शिलाओं, चट्टानों, पेड़ों तथा लकड़ियों के उपयोग से किया गया। महान शिल्पकार नल के निर्देशानुसार महाबलि वानर बड़ी-बड़ी शिलाओं तथा चट्टानों को उखाड़कर यंत्रों द्वारा समुद्र तट पर ले आते थे। साथ ही वो बहुत से बड़े-बड़े वृक्षों को, जिनमें ताड़, नारियल,बकुल,आम,अशोक आदि शामिल थे, समुद्र तट पर पहुंचाते थे। नल ने कई वानरों को बहुत लम्बी रस्सियां दे दोनों तरफ खड़ा कर दिया था। इन रस्सियों के बीचोबीच पत्थर,चट्टानें, वृक्ष तथा लताएं डालकर वानर सेतु बांध रहे थे। इसे बांधने में 5 दिन का समय लगा। यह पुल श्रीराम द्वारा तीन दिन की खोजबीन के बाद चुने हुए समुद्र के उस भाग पर बनवाया गया जहां पानी बहुत कम गहरा था तथा जलमग्न भूमार्ग पहले से ही उपलब्ध था। इसलिए यह विवाद व्यर्थ है कि रामसेतु मानव निर्मित है या नहीं, क्योंकि यह पुल जलमग्न, द्वीपों, पर्वतों तथा बरेतीयों वाले प्राकृतिक मार्गो को जोड़कर उनके ऊपर ही बनवाया गया था।

मज़ेदार बातें

दोस्तों आपको बता रहे है दुनिया की मज़ेदार बातें

ड्रग माफिया का पुत्री प्रेम Nov 06, 03:49 am
पुत्री के प्रति पिता के दुलार से तो सारी दुनिया वाकिफ है। अक्सर लोग कहते हैं कि मां का प्यारा बेटा होता है और पिता की दुलारी बेटी। लेकिन क्या आपने किसी पिता का अपनी पुत्री के प्रति ऐसा प्यार देखा है कि वो उसके लिए अपनी दौलत जला दे। नहीं ना। लेकिन 80 के दशक में कोलंबिया के ड्रग माफिया पाब्लो एस्कोबार ने अपनी बेटी को ठंड से बचाने के लिए 20 लाख डालर [करीब नौ करोड़ रुपये] जला डाले थे।

कुत्ते भी किसी वीआईपी से कम नहीं Nov 04, 07:59 pm
आप कुत्तों के शौकीन हैं लेकिन जगह की कमी के कारण पाल नहीं पा रहे हैं तो ईश्वर से प्रार्थना कीजिए कि आपके इलाके में भी ऐसा एक होटल खुल जाए जैसा ताइवान में खुला है। ताइवान की राजधानी ताइपे में दो व्यापारियों ने कुत्तों के लिए दो बड़े-बड़े होटल खोले हैं, जिनमें खाने-पीने, स्विमिंग पूल और सैलून से लेकर सभी वीआईपी सुविधाएं मौजूद हैं।

अब रास्ता भी दिखाएगा रोबोट Nov 03, 09:20 pm
कैसा हो अगर कार चलाने में रोबोट आपकी मदद करे। आप सोच रहे होंगे कि रोबोट तो आपरेशन करता है, मशीनों को संचालित करता है, क्या अब कार भी चलाएगा। जी हां, एडा नाम का यह रोबोट कार में बैठकर आपको रास्ता दिखाएगा। इसके साथ ही हर वह काम करेगा जो आपके सफर को सुहाना बनाएगा। फिर आपके रास्ते भी हंसते-हंसते कट जाएंगे।

गुस्से में जनता, सो रही सरकार Nov 02, 08:59 pm
शराब पीना अच्छी बात नहीं है फिर भी लोग पीते हैं। उनमें से कुछ पीकर बहक जाते हैं और उल्टी-सीधी हरकतों से अपने और आसपास वालों की जान जोखिम में डाल देते हैं। अब ब्रिटेन के मैनचेस्टर के इस किस्से को ही लीजिए। वहां लगभग डेढ़ किमी के दायरे में शराब की 22 दुकानें हैं।

ब्रिटेन में भी ऐसा होता है .. Nov 01, 08:54 pm
हिंदुस्तान जैसे परंपरागत समाज में बेटे की चाहत इतनी प्रबल है कि लोग इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। प्रार्थना, इबादत, इलाज, झाड़-फूंक, भ्रूण हत्या से लेकर कई-कई शादियों तक हर तरीका आजमाया जा रहा है। लेकिन ब्रिटेन जैसे आधुनिक समाज में भी बेटे की इच्छा कम नहीं है।

दुकानें 1500, खरीदार पांच सौ भी नहीं Oct 31, 08:08 pm
लंदन। कहने को तो विश्व का सबसे बड़ा माल है-न्यू साउथ चाइना। लेकिन नाम बड़े और दर्शन छोटे की तर्ज पर। चीन के डोंगुआन स्थित इस माल को एक दिन में 70 हजार लोगों के घूमने की क्षमता को ध्यान में रखकर वर्ष 2005 में बनाया गया था। मगर हुआ ठीक उल्टा। ...

आखिर खामी ही बन गई खूबी Oct 30, 07:46 pm
अब आप इसे क्या कहेंगे। इमारत की खूबी या खामी। चीन में ग्वांसी शहर के एक अपार्टमेंट में दो इमारतों के बीच सिर्फ एक फुट की खाली जगह छोड़ी गई है, जो बहुत ही कम है। अच्छी बिल्डिंग में यह फासला ज्यादा होता है। लेकिन बिल्डिंग की यही खामी उसकी खूबी में बदल गई।

रबर बैंड से बनाया 45 क्विंटल की गेंद Oct 30, 07:46 pm
फ्लोरिडा। रबर बैंड का इस्तेमाल कई तरह से होता है। लेकिन कोई इससे 45 क्विंटल की गेंद बना दे, यह जरा अटपटा लग रहा है। आपको भले ही ऐसा लगे, लेकिन अमेरिका के जोएल वाउल को अपनी इस गेंद से काफी लगाव है। लेकिन इसके बावजूद उन्हें इसे बेचना पड़ा। इसलिए कि...

ठंडी-ठंडी बीयर से नहाना चाहिए Oct 29, 09:37 pm
वियना। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बीयर से भरा स्विमिंग पूल हो और उसमें आप नहा रहे हों। पीने के शौकीन तो सोच रहे होंगे कि अगर बीयर से भरा स्विमिंग पूल मिले तो नहाएंगे बाद में, पहले पेट भरके बीयर पीयेंगे। आपकी यह कल्पना हकीकत का रूप से सकती है।...

कैरिएर की बाते

साथियों , एक बार फ़िर लेकर भारतीय एकता के इस मंच पर कैरिएर से जुड़ी बाते हम हाज़िर है आप
के पास

इन दिनों किस प्रोफेशन का युवाओं में सबसे ज्यादा क्रेज है? इस बाबत हाल ही में हुए एक सर्वे हुआ। इसके मुताबिक, अधिकांश युवा प्रोफेसर के पेशे को पहले नंबर पर मानते हैं और दूसरे नंबर पर डॉक्टर के पेशे को। बेशक कई विकल्प होने के बावजूद डॉक्टर का क्रेज शायद कभी खत्म नहीं होगा।
डॉक्टर का पेशा मतलब संबंधित फील्ड का गहन ज्ञान, अत्यधिक धैर्य और जबरदस्त संवेदनशीलता। क्या आप हैं तैयार इस पेशे में आने के लिए? ऐसा न हो कि आप भी बन जाएं उन हजारों-लाखों प्रतिस्पर्धियों की भीड का हिस्सा, जो जरा-सी चूक की वजह से अपने सपने से समझौता कर बैठते हैं। इसलिए तैयारी ऐसी रखें, जिससे आपका निशाना बैठे एकदम अचूक।
नींव मजबूत हो तो..
नींव मजबूत हो, तो बडी से बडी और मजबूत इमारत खडी की जा सकती है। मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के समय भी आपको यही मूल मंत्र ध्यान रखना होगा। यदि 10वीं-12वीं कक्षा के स्तर के फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी पर पकड अच्छी है, तो समझ लीजिए आपकी आधी तैयारी यूं ही हो गई। इन विषयों पर अच्छी पकड का मतलब है अवधारणात्मक ज्ञान के साथ-साथ विषयों के एप्लिकेशंस की बेहतर समझ।
तैयारी के लिए कोई जादुई मंत्र नहीं है। इसके लिए आपको एक खास रणनीति के तहत पढाई करनी होगी। फिजिक्स में ज्यादा से ज्यादा फार्मूले तैयार करने चाहिए। इसमें टारगेट रखें कि न्यूमेरिकल्स नियत अवधि में कम्पलीट हो जाए। केमिस्ट्री की तैयारी टेबलर फॉर्म में करें और उसे लगातार रिवाइज करते रहें।
यदि बायोलॉजी अधिक प्रिय है, तो इसका अर्थ नहीं कि आप फिजिक्स के प्रति लापरवाही बरतें। इसी तरह, केमिस्ट्री अच्छी लगती है, तो बायोलॉजी से कन्नी न काटें। साथ ही याद रखें, टेक्स्ट बुक की अनदेखी कर दूसरे स्रोतों पर पूर्ण निर्भरता परीक्षा के अंतिम समय में भारी पड सकती है। भले ही आपको कुछ चैप्टर बोरिंग लगते हों, उन्हें बिल्कुल अनदेखा करने की बजाय एक बार जरूर पढ डालें। क्या पता उसी खास हिस्से से ज्यादा प्रश्न पूछे जाएं और वही बन जाएं सिलेक्शन के चंद निर्णायक प्रश्न।
मात्रा बडी या गुणवत्ता
क्वालिटी इज मोर इंपॉर्टेंट दैन क्वांटिटी-अंग्रेजी के इस प्रचलित कहावत पर ध्यान देने की जरूरत है। चूंकि आपके पास कम समय है। इसलिए अब सभी किताबों व ढेर सारे मैटीरियल्स को पढने-समेटने की बजाय, कम से कम और उपयोगी स्रोतों को ही फॉलो करें।
जैसे, एनसीईआरटी के बुक्स, किसी अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के टॉपिकवाइज नोट्स और एक संपूर्ण कही जाने वाली गाइड बुक, इस दिशा में ज्यादा मददगार हो सकते हैं। रोजाना इन्हीं से अभ्यास करें। एनसीईआरटी की बुक्स में दिए नोट्स को दोहराना न भूलें। उसमें दिए एक्सरसाइज को जरूर करें। इस तरीके से आप खुद को बेहतर स्थिति में महसूस करेंगे। जो पढा है, जिस किताब से पढा है, वह साफ-साफ आपको याद होगा।
मतलब साफ है, आप कठिन प्रश्न भी आसानी से हल कर सकेंगे, असमंजस या कन्फ्यूजन की संभावना कम से कम होगी।
बचाव रेड वायर सिंड्रोम से
ज्यादातर मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में निगेटिव मार्किंग होती है। अभ्यर्थियों के लिए यह एक बडा फियर-फैक्टर है। यदि पहली बार मेडिकल प्रवेश परीक्षा में बैठने जा रहे हैं, तो जरूरी है कि आपको रेड वायर सिंड्रोम के बारे में पता हो।
दरअसल, परीक्षा में अमूमन चार स्तर के प्रश्न पूछे जाते हैं। पहले स्तर के प्रश्न वे हैं, जिनका सौ प्रतिशत उत्तर आपको पता होता है। दूसरे में आपको पचहत्तर प्रतिशत उत्तर आते है। तीसरे में मामला फिफ्टी-फिफ्टी का होता है और चौथे स्तर के सवालों का जवाब आपको बिल्कुल पता नहीं होता। जो अभ्यर्थी चौथे स्तर के सवाल भी देने के प्रलोभन से खुद को रोक नहीं पाते, वही हो जाते हैं रेड वायर सिंड्रोम के शिकार। परिणाम यह होता है कि यही बन जाता है उनकी विफलता का बडा फैक्टर।
इसलिए कोशिश यह होनी चाहिए कि प्रश्न-पत्र मिलते ही आप सभी सवालों को चार वर्गो में बांट लें, फिर उनके जवाब लिखें। वैसे, इस सिंड्रोम से बचने के लिए मॉडल प्रश्नों और पिछले साल के प्रश्नों का अधिकतम अभ्यास करें। अभ्यास के लिए अलग-अलग मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं के पिछले वर्ष के प्रश्न-पत्रों का सेट हो, तो अच्छा। इससे सभी प्रवेश परीक्षाओं के प्रश्न-पत्रों की प्रकृति समझने में आसानी होगी।
पिछले वषरें के प्रश्नपत्रों के आधार पर सिलेबस के उन हिस्सों की पहचान करें, जिससे ज्यादा प्रश्न पूछे जाते हैं। कोशिश करें कि प्रश्न हल करने के बाद कमजोर पक्षों को दूर करने का प्रयास हो।
कोचिंग की जरूरत
इसमें कोई दोराय नहीं कि बेहतर कोचिंग संस्थान आपकी तैयारी को सही दिशा देते हैं। इसमें परीक्षा पूर्व रिहर्सल हो जाती है। आप नई-नई जानकारियों से अपडेट होते रहते हैं। कोई विषय कमजोर है, तो सामूहिक तैयारी से कमजोरी को दूर कर सकते हैं।
कब करें कोचिंग? यदि आपको लगता है कि सिलेबस कवर होने के बाद भी कई तरह की समस्याएं हैं, तो कोचिंग ज्वाइन करें। कोचिंग को कारगर बनाना आपके हाथ में है। कोचिंग क्लासरूम में पढाए जाने वालेलेक्चर्स पर अमल करें, होने वाले टेस्ट में हिस्सा लें और अपना बेस्ट देने का प्रयास करें। ऑल द बेस्ट!
प्रस्तुति : सीमा झा
seemajha@nda.jagran.com
रिवीजन का हिट फार्मूला
रिवीजन, रिवीजन और रिवीजन-यही एक मंत्र है, जिसे इस वक्त आपको याद रखना है। रिवीजन के लिए जितने चैप्टर्स हैं, उन्हें तीन हिस्सों-सबसे कठिन चैप्टर्स, मध्यम स्तर के मुश्किल चैप्टर्स और सबसे आसान चैप्टर्स में बांट लें। इनसे संबंधित पांच-पांच की-व‌र्ड्स (संबंधित सब्जेक्ट के मूल अवधारणाओं से जुडे कुछ खास शब्द) तैयार करें। इन की-व‌र्ड्स को मन में दोहराते रहें। अगर दोहराव के दौरान अटकते हैं, तो समझ लीजिए अभी तैयारी पूरी नहीं हुई है, क्योंकि आपने अवधारणाओं को पूरी तरह नहीं समझा है। यह एक वैज्ञानिक तरीका है, आजमाएं जरूर लाभ होगा।
एआईपीएमटी व अन्य मेडिकल एंट्रेस एग्जाम
एआईपीएमटी-2010 के लिए तिथियों की घोषणा कर दी गई है। प्रारंभिक परीक्षा 3 अप्रैल, 2010 को और फाइनल परीक्षा 16 मई, 2010 को होगी। आवेदन करने की अंतिम तिथि 4 दिसंबर है।
प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए 50 प्रतिशत अंकों के साथ बारहवीं उत्तीर्ण होना चाहिए।
अधिकतम उम्र 25 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए।
अधिक जानकारी के लिए लॉग ऑन करें-
www.aipmt.nic.in
एमबीबीएस में एडमिशन के लिए अखिल भारतीय स्तर और राज्य स्तर पर कई परीक्षाएं ली जाती हैं। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज यानी एम्स जैसे बडे और ख्यातिप्राप्त संस्थान सीधे प्रवेश परीक्षा आयोजित करते हैं।
विभिन्न राज्यों के प्री-मेडिकल टेस्ट
गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली
वर्धा मेडिकल कॉलेज-वर्धा, आ‌र्म्ड फोर्स-पुणे आदि।