सबसे पहले दो उदाहरण। उत्तर प्रदेश के एक छोटे शहर में रहने वाले प्रीतम और प्राची ने बारहवीं के दौरान ही यह तय कर लिया कि ग्रेजुएशन के बाद वे जर्नलिज्म का कोर्स करके मीडिया में करियर बनाएंगे। हालांकि उस समय उन्होंने मीडिया के ग्लैमर को देखकर ही इस क्षेत्र में आने के बारे में सोचा था, लेकिन प्राची ने जहां तभी से खुद को इसके मुताबिक ढालना आरंभ कर दिया, वहीं प्रीतम ने तर्क दिया कि कोर्स के दौरान तो सारी ट्रेनिंग मिल ही जाएगी। फिर इतनी कवायद क्यों? प्राची ने ग्रेजुएशन के दौरान कई अखबारों-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर लेख भेजे, जिनमें से अधिकांश छपे भी।
दरअसल, कोई भी लेख तैयार करने से पहले वह समाचार पत्रों और उनके परिशिष्टों को बारीकी से पढती थी। उनका नेचर समझने के बाद नितांत सामयिक विषयों पर सभी पहलुओं को शामिल कर लेख की तैयारी करती थी। ग्रेजुएशन के बाद दोनों को बीएमजे कोर्स में दाखिला तो मिल गया, लेकिन प्राची ने जहां अपने अभ्यास के बल पर सभी को प्रभावित किया, वहीं प्रीतम तथा अन्य स्टूडेंट ऐसा करने में सफल नहीं रहे। कोर्स के आखिर में प्राची की योग्यता व कॉन्फिडेंस को देख कैंपस सेलेक्शन के माध्यम से एक नामी चैनल ने उसे रिपोर्टर के तौर पर चुन लिया।
उधर, प्रीतम ने बीएमजे तो पूरा कर लिया, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी वह अखबारों व चैनलों की खाक छान रहा है। आज प्रीतम जैसा हाल इस क्षेत्र में करियर बनाने की चाहत रखने वाले तमाम युवाओं का है। दरअसल, तमाम युवा ग्लैमर और इस क्षेत्र के कामयाब लोगों को देखकर इस क्षेत्र में आने का निर्णय तो कर लेते हैं, लेकिन वे यह नहीं सोचते कि आखिर कामयाब लोग इतनी बुलंदी पर कैसे पहुंचे?
खबरों को सूंघने की क्षमता
इंदिरा गांधी नेशनल ओपेन यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ जर्नलिज्म ऐंड न्यू मीडिया स्टडीज के डायरेक्टर प्रो. एस. एन. सिंह का कहना है कि आज महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक में तमाम मीडिया स्कूलों के खुलने के बावजूद युवाओं को सही तरीके से तराशा नहीं जा रहा है। कामयाबी के लिए शॉर्टकट तो ढूंढा जा रहा है, पर युवाओं को कहीं से प्रेरणा नहीं मिल रही है। आमतौर पर मीडिया कोर्स करने के दौरान उन्हें हर जगह न तो सही फैकल्टी मिल पाती है और न ही जरूरी प्रैक्टिकल ट्रेनिंग। इसके अलावा, पढने और किसी भी विषय को गहराई से जानने की उत्सुकता का अभाव भी योग्य मीडियामैन तैयार न कर पाने के लिए जिम्मेदार है।
प्रो. सिंह मानते हैं कि भले ही आज मीडिया में टेक्नोलॉजी हावी हो, लेकिन कंटेंट का कोई विकल्प नहीं है और न ही इस फील्ड में शॉर्टकट से ज्यादा आगे जाया जा सकता है। मीडिया के छात्र में जब तक खबरों को सूंघ कर समझ लेने और नए तरीके से सोचने की क्षमता नहीं डेवलप होगी, वह कामयाबी की राह पर आगे नहीं बढ सकता।
जरूरतों को समझें
नई दिल्ली स्थिति भारतीय जनसंचार संस्थान में हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्त्रम के डायरेक्टर डॉ. आनंद प्रधान का मानना है कि पत्रकारिता का कोर्स कराने वाले संस्थानों को मीडिया इंडस्ट्री की जरूरत को समझना होगा, तभी वे उनके अनुरूप जर्नलिस्ट तैयार कर सकते हैं।
ऐसे युवाओं को अखबारों और टीवी चैनलों द्वारा अलग से कुछ खास ट्रेनिंग देने की जरूरत नहीं होगी। इसके लिए इंस्टीट्यूट्स और मीडिया इंडस्ट्री के बीच नियमित रूप से इंटरैक्शन होना चाहिए।
डॉ. आनंद इस बात से निराशा जताते हैं कि हिंदीभाषी क्षेत्र के अधिकांश विश्वविद्यालयों में आज भी पत्रकारिता शिक्षा का न तो कोई इंफ्रास्ट्रक्चर है और न ही उपयुक्त फैकल्टी। वह इसे हिंदी मीडिया का दुर्भाग्य मानते हैं कि आज भी प्रतिभावान और तेज-तर्रार स्टूडेंट की पहली प्राथमिकता पत्रकारिता नहीं होती। इंजीनियरिंग, मेडिकल, आईएएस, पीसीएस आदि में जिसका कहीं सेलेक्शन नहीं हो पाता, वही इस फील्ड में आता है।
हालांकि, उनकी इस बात से असहमति जताते हुए दिल्ली स्थित टेक वन स्कूल ऑफ मॉस कम्यूनिकेशन के डायरेक्टर इमरान जाहिद कहते हैं कि जर्नलिज्म में करियर बनाने का ख्वाब देखने वाले युवा बारहवीं की परीक्षा देने के बाद अप्रैल में ही ऐसे अच्छे इंस्टीट्यूट की तलाश में जुट जाते है,ं जहां से वे उपयुक्त कोर्स कर सकें। एडिट वर्क्स के डायरेक्टर सचिन सिंह कहते हैं कि मीडिया का कोर्स करने वाले हिंदी बेल्ट के छात्रों को खुद को अपडेट भी करते रहना चाहिए।
जरूरी खूबियां
नोएडा स्थित क्रॉनिकल इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन ऐंड मल्टीमीडिया के डायरेक्टर और अंग्रेजी के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वाई. सी. हालन का मानना है कि मीडिया से संबंधित कोर्स करने के अतिरिक्त एक कामयाब पत्रकार बनने के लिए किसी भी युवा में तीन बुनियादी गुणों का होना अति-आवश्यक है:
रिपोर्टिंग यानी खबर निकालने का गुण, डेस्क यानी खबर को खास बनाने का गुण और नेटवर्किग यानी अपने आंख-कान खुले रखना, ताकि संभावित खबरों को पहचान कर पकड सकें। ये गुण प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया तीनों के लिए जरूरी हैं। अगर रिपोर्टिंग में इंट्रेस्ट है, तो आपमें सूचना निकलवाना आना चाहिए, अन्यथा आप खबर नहीं बना सकते। अगर किसी के भीतर न्यूज सेंस यानी खबरों को समझने और सूचना निकलवाने का गुण है, तो वह एक अच्छा रिपोर्टर बन सकता है।
अगर कोई डेस्क पर काम करना चाहता है, तो उसे भाषा पर पूरा अधिकार होना चाहिए। हो सकता है कि रिपोर्टर की भाषा खराब हो, लेकिन खबर एक्सक्लूसिव या ब्रेकिंग हो। ऐसे में यह कॉपी एडिटर पर निर्भर करता है कि वह उस खबर को कितना प्रभावशाली बना पाता है। जटिल से जटिल बात को भी सरल भाषा में समझाने की कला में उसे पारंगत होना चाहिए और ऐसा नियमित अध्ययन और लेखन अभ्यास से हो सकता है।
कोर्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर
दिल्ली स्थित प्रान्स मीडिया के डायरेक्टर निखिल प्राण का मानना है कि किसी भी संस्थान से जर्नलिज्म का कोर्स करने से पहले स्टूडेंट को यह जरूर देखना चाहिए कि वहां उसके लायक कोर्स और जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर है या नहीं? साथ ही, वहां आज के जमाने के हिसाब से वहां लेटेस्ट टेक्नोलॉजी भी होनी चाहिए।
जानें टेक्नोलॉजी
टेक वन के डायरेक्टर इमरान जाहिद मानते हैं कि भले ही आज के यूथ में विषयों को गहराई से समझने की कमी है, लेकिन आज आगे निकलने के लिए टेक्नोलॉजी जानना भी जरूरी है और आज के युवा इसमें काफी तेज हैं। इसका लाभ उन्हें आज की मीडिया में मिल रहा है।
उनका कहना है कि स्तरीय मीडिया संस्थानों में न केवल इंडस्ट्री के साथ रेगुलर इंटरैक्शन होता है, बल्कि फैकल्टी के रूप में अधिकांश वही लोग होते हैं, जो प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुडे हैं। ऐसे में उन्हें थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल ट्रेनिंग भी मिलती है।
अरुण श्रीवास्तव
कोर्स और प्रमुख संस्थान
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन
कोर्स: पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन जर्नलिज्म (हिंदी व अंग्रेजी)
योग्यता: स्नातक
वेबसाइट: www.iimc.nic.in
स्कूल ऑफ जर्नलिज्म ऐंड न्यू मीडिया स्टडीज, इग्नू
कोर्स: पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन जर्नलिज्म ऐंड मास कम्यूनिकेशन
वेबसाइट: www.ignou.ac.in
जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड मास कम्यूनिकेशन (जेआईएमएमसी)
कोर्स: बीएससी इन मॉस कम्यूनिकेशन, पीजी डिप्लोमा इन प्रिंट-ब्रॉडकास्ट जर्नलिज्म
ई-मेल: jimmcnoida@gmail.com वेबसाइट: www.jimmc.in
टेक वन स्कूल ऑफ मास कम्यूनिकेशन
कोर्स: बैचलर ऑफ मॉस कम्यूनिकेशन, मास्टर्स ऑफ मास कम्यूनिकेशन, पीजीडीएमसी
वेबसाइट: www.takeoneschool.org
प्रान्स मीडिया ई-मेल: pran@pran.in
वेबसाइट: www.pran.in
क्रॉनिकल इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन
कोर्स: बीएससी (एमसीएजे), पीजीएमसीएजे
ई-मेल: info@cimcom.in
वेबसाइट: www.cimcom.in
एडिट वर्क्स स्कूल ऑफ मॉस कम्यूनिकेशन